![]() साहित्य, कला और संस्कृति के संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध संस्था 'सर्व भाषा ट्रस्ट' द्वारा 14 सितम्बर को श्री हंस सरस्वती पुस्तकालय, राजनगर पार्ट – एक, पालम, नई दिल्ली में 'हिन्दी दिवस समारोह' का आयोजन किया गया । यूं कहें कि उक्त कार्यक्रम से ही संस्था कि गतिविधियों की शुरुआत की गई जिसमे एक परिचर्चा व कवि-गोष्ठी का आयोजन किया गया । उक्त अवसर पर ट्रस्ट के अध्यक्ष व श्रेष्ठ साहित्यकार डॉ अशोक लव ने कार्यक्रम कि अध्यक्षता करते हुये कहा कि सबको अपनी भाषा को बचाने और बढ़ाने का अधिकार है । इस न्यास कि शुरुआत का मुख्य उद्देश्य यही है कि देश-विदेश के सभी भाषा-प्रेमियों व सेवकों को एक साथ जोड़ा जाय । |
![]() हरसिद्धि(16 सितंबर 2017) प्रखंड स्थित गायघाट के माई स्थान के सभागार मे शनिवार को प्रखंड के सभी भाजपा कार्यकर्ता की बैठक हुई।बैठक की अध्यक्षता भाजपा जिला अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने की साथ ही नये विधानसभा प्रभारी बने अनिरुद सहनी को माला पहनाकर स्वागत किया। बैठक को संबोधित करते हुए श्री सहनी ने कहा प्रधानमंत्री के जन्मदिन के मौके पर स्वच्छता अभियान गाँव के हर नुकड़ व दलित बस्ती मे चला कर प्रधानमंत्री के सपनो को साकार करना है व सबको जागरूक करना है।साथ ही प्रधानमंत्री के मन की बात को हर किसी तक पहूँचाना है वही पूर्व विधायक कृष्णनंदन पासवान ने कहा की श्री सहनी जी के आने से पार्टी को मजबूती मिलेगी।मंच का संचालन माहामंत्री रबी विश्वकर्मा ने की मौके पर।गायघाट मंडल अध्यक्ष हरेन्द्र कुशवाहा,तुरकौलिया मंडल अध्यक्ष राजकिशोर सिंह, विस्तारक दिलीप कुमार, महामंत्री पवन राज, राकेश कुमार सिंह,युवा अध्यक्ष निकेश सिंह,युवा उपाध्यक्ष अमित कुमार, मिडिया प्रभारी राजु कुमार सिंह,अनिल सिंह, रामबाबू पटेल, मार्कडेय कुशवाह, रजनीश कुमार सहित अन्य भाजपा कार्यकर्ता उपस्थित रहे। |
![]() इंदिरा गांधी द्वारा 1975 में देश में आपातकाल घोषित किए जाने जैसे तानाशाही कदम को कांग्रेस विरोधी दल आज तक भुला नहीं पाते। आज भी प्रत्येक वर्ष 25 जून को आपातकाल विरोधी विचार रखने वाले लोग इस दिन को कांग्रेस, खासतौर पर इंदिरा गांधी के तानाशाहीपूर्ण रवैये की याद के तौर पर मनाते हैं। आपातकाल का सारांश यही था कि चूंकि इंदिरा गांधी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक चुनाव संबंधी मुक़द्दमा हार गई थीं। उस समय उन्हें नैतिकता के आधार पर त्यागपत्र दे देना चाहिए था। परंतु सत्ता हाथ से निकलने के भय से उन्होंने त्यागापत्र देने के बजाए देश में आपातकाल की घोषणा करना ज्यादा बेहतर समझा। और पूरे देश में इमरजेंसी घोषित कर दी। प्रेस की आज़ादी का गला घोंट दिया गया। इस तानाशाही रवैये का कांग्रेस तथा इंदिरा गांधी को क्या नतीजा भुगतना पड़ा इसका इतिहास गवाह है। वर्तमान दौर में देश में काफी लंबे अर्से के बाद भारतीय जनता पार्टी की बहुमत वाली सरकार सत्ता में है। परंतु भाजपा के 2014 में सत्तासीन होने के बाद से ही यह महसूस किया जा रहा है कि भाजपा लगभग हर क्षण भविष्य में होने वाले चुनावों की तैयारियों में मशगूल है। उसे 2014 से ही 2019 के चुनावों की फिक्र होने लगी है। दिल्ली की हुकूमत तथा भाजपा से जुड़े रणनीतिकार हर समय ऐसा चक्रव्यूह रचने में लगे रहते हैं जिससे कि विपक्ष को कमजोर किया जा सके तथा जितना अधिक से अधिक हो सके विपक्ष की आवाज को दबाया जा सके। भाजपा अपनी इसी रणनीति के तहत देश के दूसरे कई राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनैतिक दलों में तोड़-फोड़ की कार्रवाई को भी प्रोत्साहित करती आ रही है। यहां तक कि देश को कांग्रेस मुक्त बनाने का दंभ करने वाली भाजपा स्वयं कांग्रेस युक्त होती जा रही है। सवाल यह है कि क्या किसी बहुमत की जनप्रतिनिधि सरकार पर यह शोभा देता है कि वह कमज़ोर विपक्षी दलों से इतना भयभीत हो जाए कि वह लोकतांत्रिक तरीक़ों से उठने वाली विपक्ष की आवाज़ का भी गला घोंटने को तैयार रहे? क्या बहुमत वाली केंद्रीय सत्ता का असली चेहरा यही है कि वह मीडिया में उठने वाली विपक्ष की किसी भी आवाज़ को दबाने के लिए मीडिया घरानों से ही रंजिश पाल बैठे? क्या इस तरह के रवैये इस बात का सीधा संकेत नहीं हैं कि इंदिरा गांधी की ही तरह नरेंद्र मोदी भी सत्ता को किसी भी क़ीमत पर हाथ से जाते नहीं देखना चाहते? |
![]() जिरादेई( सीवान ) मैरवा थाना के तितरा गांव के नवाब टोला में एक भतीजा द्वारा अपने सगे चाचा की हत्या कर दी गयी. घटना मैरवा थाना क्षेत्र के नवाबगंज गाँव में सोमवार की देर रात घटी. वहीं हत्या की घटना को अंजाम देने के बाद आरोपी भतीजे ने खुद मैरवा थाना में जाकर आत्म समर्पण कर दिया.हत्या के सही कारणों का अभी पता नहीं चल सका है. पुलिस सूत्रों के अनुसार, पारिवारिक विवाद में येहत्या की गयी है. वहीं घटना के सम्बन्ध में मिली जानकारी के अनुसार बताया जाता है कि सोमवार की रात आरोपी भतीजा अजीत राम की पत्नी के पेट में तेज दर्द की शिकायत हुयी. जिसके बाद उसके चाचा नथुनी राम की पत्नी उसे गाँव में ही एक डॉक्टर सेदिखाने के लिए लेकर गयी. उस समय चाचा नथुनी राम घर के बाहर खात पर सोया था. जब डॉक्टर को दिखा करदोनों महिलायें |
![]() भारतवर्ष को संघमुक्त बनाए जाने का नारा अभी कुछ ही समय पूर्व बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा दिया गया था। आज वही नितीश कुमार 2019 में न केवल भारतीय जनता पार्टी की सत्ता में वापसी के लिए विश्वस्त दिखाई दे रहे हैं बल्कि उनकी राजनीति की अवसरवादिता नरेंद्र मोदी को ही 2019 का प्रधानमंत्री पुन: बनाने जैसी घोषणा करने पर भी उन्हें मजबूर कर रही है। तो क्या कल तक सर पर टोपी तथा कांधे पर अरबी स्कार्फ रखकर नमाजि़यों की कतार में बैठने वाले,ईद तथा रोज़ा इफ्तार बिहार के मुस्लिम समुदाय के साथ करने वाले यहां तक कि मुस्लिम अकीदे के अनुसार अपने दोनों हाथ बुलंद कर अल्लाह से दुआ मांगने वाले नितीश कुमार ने धर्मनिरपेक्षता का आवरण फेंक कर हिंदुत्ववादी आवरण को धारण कर लिया है? और दूसरा इससे बड़ा सवाल यह कि क्या किसी भी धर्म का कल का कोई सांप्रदायिकतावादी नेता धर्मनिरपेक्षता का लिबादा ओढक़र स्वयं को धर्मनिरपेक्ष साबित कर सकता है? या कोई धर्मनिरपेक्षतावादी |
![]() वाम दलों की राजनीती क्यों हुई खारिज आर.के. सिन्हा लेफ्ट पार्टियों के सिकुड़ने और खारिज होने का ताजा प्रमाण यह है कि अब इसका पश्चिम बंगाल से कोई भी सदस्य राज्य सभा में नहीं आयेगा। राज्यसभा के इतिहास में आजादी के बाद यह पहली बार हो रहा है। वैसे तो लेफ्ट पार्टियों का पतन भारतीय राजनीति के लिए शुभ संकेत नहीं है। इन दलों को अब अपनी वजूद को कायम रखने के लिए जनता के बीच में अधिक काम करना होगा। जनता से जुड़े मुद्दों पर संघर्ष करते रहना होगा। इन्हें देश के राजनीतिक पटल से पूरी तरह से खारिज होने से अपने को बचाना ही होगा। जनभावनाओं की अनदेखी आप वाम दलों के पतन का गहराई से अध्ययन करें तो आप महसूस करेंगे कि इन दलों का नेतृत्व पिछले पचास दशकों से जन भावनाओं से पूरी तरह से हटकर सोच तो रहा है। इसका एक उदाहरण ले लीजिए। यह बहुत पुरानी बात नहीं है जब केन्द्र सरकार ने कहा कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक किया और वहां आतंकियों के ठिकानों को नष्ट किया। जवाब में ये वाम दल मांग करते रहे कि भारत सरकार सर्जिकल स्ट्राइक के प्रमाण प्रस्तुत करे। वामदल अपने को गरीब-गुरबा के हितों का सबसे मुखर प्रवक्ता बताते हैं। जरा कोई बता दे कि इन्होंने हाल के वर्षों में कब महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी जैसे सवालों पर कोई आंदोलन छेड़ा हो। सारा देश राष्ट्र एकता और अखंडता के सवालों पर एक है। पर ये |
![]() वाम दलों की राजनीती क्यों हुई खारिज आर.के. सिन्हा लेफ्ट पार्टियों के सिकुड़ने और खारिज होने का ताजा प्रमाण यह है कि अब इसका पश्चिम बंगाल से कोई भी सदस्य राज्य सभा में नहीं आयेगा। राज्यसभा के इतिहास में आजादी के बाद यह पहली बार हो रहा है। वैसे तो लेफ्ट पार्टियों का पतन भारतीय राजनीति के लिए शुभ संकेत नहीं है। इन दलों को अब अपनी वजूद को कायम रखने के लिए जनता के बीच में अधिक काम करना होगा। जनता से जुड़े मुद्दों पर संघर्ष करते रहना होगा। इन्हें देश के राजनीतिक पटल से पूरी तरह से खारिज होने से अपने को बचाना ही होगा। जनभावनाओं की अनदेखी आप वाम दलों के पतन का गहराई से अध्ययन करें तो आप महसूस करेंगे कि इन दलों का नेतृत्व पिछले पचास दशकों से जन भावनाओं से पूरी तरह से हटकर सोच तो रहा है। इसका एक उदाहरण ले लीजिए। यह बहुत पुरानी बात नहीं है जब केन्द्र सरकार ने कहा कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक किया और वहां आतंकियों के ठिकानों को नष्ट किया। जवाब में ये वाम दल मांग करते रहे कि भारत सरकार सर्जिकल स्ट्राइक के प्रमाण प्रस्तुत करे। वामदल अपने को गरीब-गुरबा के हितों का सबसे मुखर प्रवक्ता बताते हैं। जरा कोई बता दे कि इन्होंने हाल के वर्षों में कब महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी जैसे सवालों पर कोई आंदोलन छेड़ा हो। सारा देश राष्ट्र एकता और अखंडता के सवालों पर एक है। पर ये वामदल अपने तरीके सोच रहे हैं। इनके येचुरी तथा करात सरीखे नेता सिर्फ कैंडिल मार्च निकाल सकते हैं या केरल में आर.एस.एस. के कार्यकर्तायों की निर्मम हत्याएं भर करवा सकते हैं। इसलिए अब इन्हें जनता खारिज करती जा रही है। देश ने इनका पहली बार असली चेहरा देखा 1962 में चीन से जंग के वक्त। तब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(भाकपा) ने राजधानी के बारा टूटी इलाके में चीन के समर्थन में एक |
![]() कांग्रेस,राष्ट्रीय जनता दल तथा जनता दल युनाईटेड के महागठबंधन ने जिस प्रकार 2015 में बिहार राज्य विधानसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ को अवरोधित कर बहुमत से अपनी सरकार बनाई थी वही राज्य बिहार 2019 में एक बार फिर हिंदुत्ववाद बनाम धर्मनिरपेक्षता की कसौटी पर परखा जाने वाला है। 2015 में बिहार ने यह साबित कर दिया था कि यदि विपक्ष एकजुट हो जाए तो धर्मनिरपेक्ष विचारधारा को पराजित नहीं किया जा सकता। ठीक इसके विपरीत 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव विपक्ष को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त रहे कि धर्मनिरपेक्ष शक्तियों का बिखराव सांप्रदायिक ता$कतों की सफलता की पक्की गारंटी है। ऐसे में सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को लोकसभा व पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव में मिली भारी जीत के बाद क्या महागठबंधन नाने की विपक्षी दलों की कवायद राष्ट्रीय स्तर पर ख़ासतौर |
![]() हरियाणा के बल्लभगढ़ रेलवे स्टेशन पर हुए बालक जुनैद के कत्ल पर जंतर-मंतर और देश के दूसरे कुछ भागों में कई प्रदर्शन हुए ! होना भी चाहिए था। फैज अहमद फैज और कबीर की रचनाएं पढ़ी गईं। वासे तो यह बहुत अच्छी बात है। पर अब एक सवाल भी पूछने का मन कर रहा है। जो जुनैद के कत्ल पर स्यापा कर रहे है, वे तब कहां थे जब राजधानी के जनकपुरी इलाके में डा. पंकज नारंग को बर्बरता से मार डाला गया था? हत्या की घटनाओं और हत्यारों के रंग में फर्क क्यों? कहा गया था कि डा.नारंग की हत्या सांप्रदायिक नहीं है। बताने वाले वही सेक्युलरवादी बिरादरी के मेंबर थे,जो जुनैद की हत्या पर आंसू बहा रहे है। ज़िन्दगी बचाने वाले डॉक्टर की सरेआम |
![]() देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद यानी राष्ट्पति के बारे में मुझेे पहली जानकारी स्कूली जीवन में मिली , जब किसी पूर्व राषट्रपति के निधन के चलते मेरे स्कूल में छुट्टी हो गई थी। तब में प्राथमिक कक्षा का छात्र था। मन ही मन तमाम सवालों से जूझता हुआ मैं घर लौट आया था। मेरा अंतर्मन किसी के देहावसान पर सार्वजनिक छुट्टी के मायने तलाशने लगा। इसके बाद बचपन में ही वायु सेना केंद्र में आयोजित एक समारोह में जाने का मौका मिला, जहां मुख्य अतिथि के रूप में तत्कालीन राष्ट्रपति महोदय मंचासीन थे। कॉलेज तक पहुंचते - पहुंचते राजनेताओं के सार्वजनिक जीवन में मेरी दिलचस्पी लगातार बढ़ती गई। |
![]() इसे संयोग ही मानता हूं कि मध्य प्रदेश के मंदसौर में जिस दिन पुलिस फायरिंग में छह किसानों की मौत हुई, उसी रोज कभी मध्य प्रदेश का हिस्सा रहे छत्तीसगढ़ से मैं अपने गृहप्रदेश पश्चिम बंगाल लौटा था। मानवीय स्वभाव के नाते शुक्र मनाते हुए मैं खुद को भाग्यशाली समझने लगा कि इस मुद्दे पर विरोधियों की ओर से आयोजित बंद की चपेट में आने से पहले ही मैं ट्रेन से अपने गृहनगर लौट आया। वर्ना क्या पता रास्ते में किस प्रकार की तकलीफें सहनी पड़ती। मंदसौर की घटना अभी राष्ट्रीय राजनीति को मथ ही रही थी कि मेरे गृह प्रदेश पश्चिम बंगाल की शांत वादियों के लिए पहचाने जाने वाले दार्जलिंग में भी इसी प्रकार की हिंसा भड़क उठी, वह भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत तमाम कैबिनेट मंत्रियों की उपस्थिति में। देखते ही देखते अनेक वाहन आग के हवाले कर दिया। पथराव में अनेक पुलिसकर्मी घायल हुए। नौबत सेना बुलाने तक की आ गई। |
![]() MCD Polling in Delhi. All people are ready to get a new MCD Govt. |
डूब मरो .......... |
चैम्पियन ट्राफी में भारत के करारी हार के बाद वहा के बोल न्यूज़ चैनल के एंकर ने भारत के प्रधानमंत्री के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग किया | एंकर ने प्रधानमंत्री को ही नहीं बल्कि भारतीय जनता को भी कोसने में सभी मर्यादाओं को पार कर दिया | एंकर ने भारतीय टीम की हार पर तंज कसते हुए कहा - |
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देश पर भारी बोझ मोदी का मन्त्रिमण्डल |
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राजनाथ सिंह ने अपने निवास पर रुद्राक्ष का पौधा लगाया |
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साँच बोलत बा का ? |
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